गुजराती के एक प्रसिद्द दैनिक में प्रकाशित एक लेख ने बुद्धिजीवी वर्ग के प्रति हिन्दुओं के मन में एक बार पुनः आक्रोश भर दिया है। अपने आप को सेक्युलर व बुद्धिमान दिखाना हो, सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करनी हो तो हिन्दू देवी-देवताओं के अपमान में एक लेख लिख दीजिये या हास्य के नाम पर फूहड़ता से संस्कृति का उपहास कर लीजिये। आप को रातों रात कुछ समाचार पत्र व टीवी चैनल प्रसिद्द कर देंगे। आप जितना भारतीय संस्कृति का उपहास करेंगे, उसे पिछड़ा, रूढ़िवादी कह कर लोगों के सामने रखेंगे आप एक उदारवादी व टीवी मीडिया के चेहते बन जायेंगे। ऐसी सोच व उसे मान्यता वामपंथी शिक्षा पद्दति से शिक्षित पिछली पीढ़ी को मिली थी। परन्तु सोशल मीडिया के इस युग में अब भारतीय युवा के पास सारी जानकारी उसकी हथेली पर हैं, वह एक मिनट में ही सत्य जान सकता है। उसे अपने पूर्वजों पर गर्व है, अपने रीती-रिवाजों व कर्म कांडों का वैज्ञानिक महत्व भी विदित है, अतः वामपंथी विचारों के वाहक मीडिया, बुद्धिजीवी, शिक्षाविदों व उनके आकाओं को अब उनकी दुकान चला पाना कठिन हो रहा है।
सन्देश नामक गुजराती दैनिक के संपादक ने ” भारतीय संस्कृति में पहला फेक अन्कॉउंटर भगवान राम ने बाली का किया था ” नामक शीर्षक से इतिहास की कई अन्य घटनाओं को भी उद्धृत कर अति कुरूपता से उनका चित्रण किया है। भगवान राम द्वारा बाली के वध को फेक अन्कॉउंटर बताने वाले लोग ही एक आतंकी सोहराबुद्दीन के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने पर पुलिस के कई अधिकारीयों को जेल के पीछे धकेल देते हैं जिससे पुलिस का मनोबल ध्वस्त होता है व उन आतंकियों को हौसला मिलता है । भगवान राम ने बाली का वध किया क्योंकि उसने सुग्रीव की पत्नी का हरण कर उसे राज्य से निकाल दिया था। बाली की अनन्य शक्ति उसको युद्ध में शत्रु की आधी शक्ति दे देती थी इस कारण भगवान राम ने बाली को पेड़ के पीछे से छुप कर मारा, सुग्रीव सत्य के साथ खड़ा था व बाली असत्य, इसलिए सत्य का ही साथ देना चाहिए जो भगवान राम ने किया, तो यह फेक एन्काउंटर कैसे हुआ? ये वही लोग हैं जो संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु के शिष्यों की टुकडे टुकड़े गैंग को सही ठहराने व समर्थन में पूरा समाचार पत्र भर देते हैं।
दूसरा उदाहरण लेखक ने गुरु द्रोणाचार्य का दिया है जिनको उसके अनुसार भगवान कृष्ण ने धोखे से मारा। भीम ने हाथी को मारकर गुरु द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा के मारे जाने की बात गुरु द्रोण को बताई जिससे उनका मन शोक में घिर गया व कृष्ण ने अर्जुन को बाण चलाने का संकेत किया, गुरु द्रोण की मृत्यु हुई। परन्तु सत्य यह है कि गुरु द्रोण को राज्य धर्म का निर्वाह करते हुए दुर्योधन की सेना में लड़ना पड़ा, गुरु द्रोण जानते थे की यदि युद्ध चलता रहा और वह लड़ते रहे तो पांडव कभी विजयी नहीं होंगे और सत्य पराजित हो जायेगा। गुरु द्रोण यह भी जानते थे अश्वत्थामा चिरंजीवी है उसे कोई नहीं मार सकता। यहाँ संपादक महोदय ने स्थिति का सही विवेचन करने के बजाय भगवान कृष्ण का भी चरित्र हनन करने का प्रयास किया।
तीसरा उदहारण पितामह भीष्म का दिया गया, भगवान कृष्ण ने शिखंडी को उनके सामने खड़ा कर दिया जो पूर्व जन्म में स्त्री था, (यदि भीष्म चाहते तो यह कोई कारण नहीं था क्योंकि शिखंडी इस जन्म में तो पुरुष ही था) जिससे वे अपनी प्रतिज्ञानुसार उसके ऊपर बाण न चला सकें। परन्तु सत्य यह है कि भीष्म पितामह स्वयं चाहते थे कि पांडवों की विजय हो क्योंकि पांडव सत्य के लिए लड़ रहे थे व कौरव असत्य के लिए, राज्य धर्म का पालन करने के लिए कौरवों की सेना के साथ लड़ना उनकी लाचारी थी। परन्तु जैसे ही सामने शिखंडी के रूप में कारण दृष्टिगोचर हुआ उन्होंने अपने अस्त्र शस्त्र रख दिए। धर्म व सत्य के लिए दिए गए स्वयं के ऐसे बलिदानों को हमारे बुद्धिजीवियों ने षड़यंत्र का शिकार घोषित कर उनके त्याग का सत्यानाश कर दिया।
भारत व विश्व में ऐसे ही तथाकथित विद्वानों के निरर्थक विवेचनों ने हमारे धर्म ग्रंथों व इतिहास की घटनाओं को उसके मूल स्वरुप को न समझा कर उसका विकृत रूप प्रस्तुत किया व सनातन हिन्दू समाज को तोड़ने वाली शक्तियों को समर्थ बनाया। यहाँ पितामह भीष्म के सत्य की विजय के लिए किया गया प्राणों का त्याग निरर्थक हो गया व उनको षड़यंत्र के तहत भगवान कृष्ण व पांडवों द्वारा धोखे से मारने की बात को प्रचारित प्रसारित किया गया। गुरु द्रोण जैसे महान गुरु जिन्होंने यह ज्ञात होने के बाद भी कि अश्वत्थामा अमर है चिरंजीवी है शोक दिखा कर अपने शस्त्र रख दिए ताकि धर्म व सत्य की विजय हो सके। क्या बिना गुरु द्रोण व भीष्म पितामह की मृत्यु के धर्म की विजय संभव थी ?
हमारे वामपंथी इतिहास कारों व सेक्युलर हिन्दू बुद्धिजीवियों ने एकलव्य जैसे महान त्यागी गुरु भक्त शिष्य को भी एक सामान्य बुद्धिहीन जंगली बालक की श्रेणी में ला कर रख दिया। एकलव्य का स्थान महान शिष्यों में होना चाहिये उसके स्थान पर गुरु द्रोण के द्वारा मूर्ख बनाकर उसकी ऊँगली कटवा लेने का झूठ प्रचारित कर गुरु द्रोण को भी कलंकित किया गया। सत्य यह है कि जब एकलव्य को यह ज्ञात हुआ कि गुरु द्रोण ने अर्जुन को विश्व का श्रेठतम धनुर्धर बनाने का वचन दिया हुआ है, व मेरे रहते मेरे गुरु का यह वचन मिथ्या हो जायेगा और उनकी मान प्रतिष्ठा में धूमिल हो जायेगी , उसने अपना अंगूठा काट दिया। एक शिष्य का इससे बड़ा बलिदान क्या हो सकता था ? उस महान शिष्य को एक बुद्धि-विवेक हीन बालक जो किसी के कहने पर अपना अंगूठा काट देता है के तौर पर प्रसिद्द कर भारत की भोली वनवासी प्रजा को नगरों में रहें वाले अन्य हिन्दुओं के विरुद्ध जहर घोलने में किया गया।
हिन्दुओं को जात-पात में बाँट कर तोड़ने की यह प्रथा अब इतने गहरे बैठ गयी है कि अभी कुछ दिन पूर्व कानपुर के कुख्यात अपराधी विकास दुबे जिसने ८ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी, उसको भी मीडिया में बैठे कुछ देश द्रोही एजेंडा चला रहे लोगों द्वारा ब्राह्मणों के ऊपर ठाकुरों द्वारा हो रहे अत्याचार की तरह प्रचारित करने का प्रयास हुआ। एक ठाकुर मुख्यमंत्री द्वारा ब्राह्मण की हत्या बनाकर प्रस्तुत किया गया। अब समय है समाज के विभिन्न प्रभावी स्थानों पर बैठ कर समाज में विष घोल रहे ऐसे बुद्धिजीवियों ,पत्रकारों ,शिक्षा विदों ,फिल्म कलाकारों को आईना दिखाया जाय व उनको समाज के सामने ला कर उनकी पोल खोली जाय। हिन्दू धर्म ग्रंथों को तोड़ मरोड़ कर समाज में विष घोलने का कार्य जब तक बंद नहीं होगा, समाज जाति-धर्म पर बंटा रहेगा व प्रगति में बाधा बना रहेगा।
हिन्दू धर्म का उपहास करना स्वतंत्रता के बाद से ही एक प्रगतिवादी सोच का प्रमाणपत्र बन गया। किसी में साहस नहीं है कि वो हर वर्ष ईद पर होने वाले पशुओं के संहार के विरुद्ध लेख लिखे , टीवी पर संवाद करे, मस्जिदों से दिन में पांच बार फैल रहे ध्वनि प्रदूषण के विरुद्द लेख लिखे। ईसाई मिशनरियों द्वारा भोले आदिवासियों व दलित बंधुओं का लालच दे कर करवाये जा रहे धर्मान्तरण के विरुध्द बोले। उनकी छोड़िये ये संपादक महोदय स्वयं ब्राह्मण जाति का उपनाम अपने नाम के पीछे लगाते हैं, ऐसे हिन्दुओं का क्या करें ?
हिन्दू समाज को अपनी बात स्वयं अपने घरों में अपने बालकों से करना प्रारम्भ करना होगा। उन्हें इतिहास की घटनाओं का सही विवेचन कर बताना होगा। हिन्दू केवल धन के पीछे भागेगा तो अपने संतानों को सांस्कृतिक रूप में खो देगा और एक दिन उसके बच्चे उससे उसका असली पिता होने के प्रमाण मांगे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कोरोना महामारी ने हमें बता दिया है कि पैसा, शान-शौकत, सभी यहीं रह जायेगा, अब तो कोई शमशान तक भी साथ नहीं आता। परिवार के साथ समय बिताएं, इन विषयों पर उन्मुक्त चर्चा करें, अच्छे विचार सुने व सुनाएँ, धार्मिक व अच्छी पुस्तकों का वांचन करें। अपने धर्म व इतिहास के ग्रन्थ घर में लाएं, सबके साथ उनका पठन-पाठन करें। अपनी इस महान थाती को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का नैतिक दायित्व हम पर है, जैसे उसे हमारे पुरखों ने हम तक पहुंचाया था। नहीं तो इस प्रकार के लेख लिखे जाते रहेंगे, हमारे बच्चों व अगली पीढ़ी को भ्रमित करते रहेंगे और यह महान संस्कृति नष्ट हो जाएगी।